Saturday 26 September 2020

गुरुदक्षिणा

  गुरुदक्षिणा 

कलाकार : शिक्षिका (रिटायर्ड ) ,६४ साल 
                       विद्यार्थी   :  ३०-३५  साल   (३-४  विद्यार्थी ) 
                           (सड़क पर खड़े कुछ लोग )


SCENE 1 : ( सड़क । दिन )
एक बस स्टॉप पर एक पागल औरत भिक मांग रही है। 
  (भिखारन  एक फटेहाल स्थिति में है ,शरीर से बदबू आ रही है। काली कलूटी,बाल बिखरे हुआ है ,वह जिसके पास भी जाती है ,लोग धक्के मारकर उसे भगा देते हैं। ) तभी अचानक एक गाड़ी वह से गुजर रही होती है। गाड़ी में बैठे  शख्श की नजर उस भिखारन  पर पड़ती है। वह आदमी आश्चर्य  चकित हो जाता है , तब तक गाड़ी कुछ आगे निकल जाती है।  वह अपने ड्राइवर से गाड़ी रिवर्स लेकर उस भिखारन के पास रुकाने के लिए कहता है। ड्राइवर गाड़ी आगे से रिवर्स लेकर उस भिखारन के पास आकर  रुक जाता है। तभी वह आदमी उस गाड़ी से बाहर आकर ,उस भिखारन की तरफ जाता है। )



विनय : टीचर आप , इस हाल में। 
भिखारन : हूँ, (भिखारन अपने आप में ही बड़ बड़ा रही है )
विनय  : टीचर मै आपका स्टूडेंट हूँ ,आपने मुझे स्कूल में मैथ्स पढ़ाया था। 
भिखारन : (अपने आप में ही लगी हुई है , मुझे मत मारो,मुझे मत मारो , मैंने बहुत दिनों से कुछ नहीं खाया है , ऐसा कह कर वह रोने लगती है।फिर अचानक  खुद ही कहने लगती है ,मुझे कुछ नहीं चाहिए , मुझे यहाँ से मत भगाओ । )
   ( भिखारन की यह दयनीय स्थिति देखकर  विनय की आँखो  में पानी आ जाता है , वह अपने दोस्तों को फ़ोन करता है।दूसरी तरफ से गणेश फ़ोन उठाता है। 
विनय  : गणेश , गणेश। 
Scene 2 (intercut )
गणेश : अरे  , विनय  बहुत दिनों बाद याद  किया दोस्त को। 
विनय  : अरे गणेश ओ अपनी  मैथ्स  टीचर  थी ना 9 -10 TH में। 
गणेश  : हा , भाई  क्या पढ़ाती थी ना। किधर हैं वो। 
विनय  : अरे , आज मैं  पास की सड़क से गुजरा रहा था , तो मैंने एक भिखारन को भिक मंगाते देखा ,और..... 
गणेश  : (बीच में ही बोल  पडता है ) वो तो रोज का है।  रोड पर तो बहुत से भिखारी भिक माँगते रहते हैं , उसमे नया क्या है ...... 
विनय : लेकिन जिस भिखारन को मैंने देखा वह हमारी मैथ्स टीचर थी। 
गणेश : क्या बात करा रहा बे , आज ज्यादा चढ़ा लिया है क्या। 
विनय  : नहीं नहीं , वो अपनी मैथ्स टीचर ही है , मैं उनके पास खड़ा हूँ। 
गणेश  : (स्थिति की गंभीरता को समझते हुए ) किधर है तू  , मैं अभी राकेश , आनंद और गीता को लेकर आता हूँ। तू वही पर रुक। 
विनय : मैं आनंद नगर वाले रोड पर हूँ ,जल्दी आ जाओ , मै यही पर रुकता हूँ। 
( तभी गणेश आपने दोस्तों को फ़ोन करता है , और सब उन लोगो को उस घटना के बारे में बताता है , सभी अपने -अपने ठिकाने से उस जगह के लिए निकल पड़ते है। तभी विनय वहाँ पर मौजूद लोगो से उस भिखारन के बारे में पूछता है। )


SCENE 1 (INTERCUT )
एक आदमी : मैं तो इस पागल को कितने दिनों से यही आसपास भीख मंगाते हुए देखता हूँ , लोग बताते है बहुत पढ़ी लिखी है , इंगलिश में भी बाते करती है , कभी कभी। 
विनय  : हाँ , ये हमारी टीचर है , हमको मैथ्स पढ़ाती थी , लेकिन इनकी ये दशा कैसे हुई। 
( तभी वहां पर खड़ा एक आदमी बोल पड़ता है )
दूसरा आदमी : सुना है ,किसी स्कूल में टीचर थी , लेकिन रिटायर होने के बाद जो भी पैसे उन्हें मिले थे , उसके बेटे -बहु ने सब हड़प लिए , और उसको घर से बाहर निकाल दिया, तब से पागलो  की तरह यहाँ वहाँ घूमती रहती है। 
पहला आदमी : कभी कभी कोई  खाना दे देता है , कुछ लोग धक्के मारकर भगा भी देते है। ये बिचारी  यहाँ वहा पड़ी रहती हैं। 
( तभी सब दोस्त आ जाते है , अपनी गाड़ी से उतरते हुए )
गणेश : विनय कहा है टीचर , कहाँ है। .
(सभी दोस्त अपनी टीचर की स्थिति को देखकर भावुक हो , सभी एक स्वर में बोलते है ,इन्हे यहाँ से ले चलो , परन्तु वह पागल वहाँ  से उठने को तैयार नहीं होती , परन्तु सभी स्टूडेंट अपनी टीचर को गीता (एक स्टूडेंट) के सहारे उठा कर विनय के घर लाते है , विनय अपनी  माँ को सब बताता है। वहाँ पर गीता और अपनी माँ की मदत से उसे नहलाया  जाता है , विनय की माँ के उसे अपने कपडे  पहनने के लिए देती है। क़ुछ समय बाद जब टीचर नहा कर गीता की मदत से बाहर आती है , उस समय उन्हे अपनी वास्तविक टीचर के दर्शन होते है। )   



SCENE 3 (विनय का घर /दिन )
विनय  : (अपनी माँ की तरफ देखते हुए ) माँ मैं सोच रहा था  ... (तभी उसकी माँ स्वयं बोल  पड़ती  है। )
माँ  : हाँ , मैं भी यही सोच रही थी की क्यों न इनको अपने घर ही रख लिया जाए , यही ना।
विनय : हाँ , माँ , मेरी प्यारी माँ (ऐसा बोल कर वह माँ को गले लगा  लेता है। 
(बाकि भी सभी दोस्त बोल पड़ते है ऐसा नहीं चलेगा , हम भी तुम्हे हर महीने कुछ न कुछ मदत कर दिया करेंगे )
विनय : बस हो गया तुम लोगो का ,मैं इतना तो कमाता ही हूँ की आठ -दस लोगो का पेट भर हूँ। 
सभी दोस्त एक साथ में : नहीं ऐसे चलेगा , हर महीने  जिससे जो भी बन पड़ेगा वह ,आकर दे जाया करेगा , आखिर हमारी भी टीचर है ,हमें भी अपनी गुरुदक्षिणा देने का मौका मिलाना चाहिए , हमारा भी तो फर्ज बनता है। 
माँ  :हाँ  भई  हाँ ,जिसको जो करना है ,करना अभी उनको आराम  करने दो , यह बोल कर सब हॅसने लगते है ।   ( टीचर उन लोगो की तरफ देखती रहती है  और अपने आप में कुछ न कुछ बढ़ बढ़ाती रहती हैं , उसे लोग समझा बुझा कर  सुला देते है ) और आपस में बात करने लगते है। 











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